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तैयारी / रेखा

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<Poem>
कुछ दिन बाकी हैं
अभी आओ पास बैठो
जाने से पहले बता दूँ तुम्हें
मेरे न होने पर
तुम सब को कैसे रहना है
स बड़े बक्से में
पड़े हैं सबके गरम कपड़े
स्वैटर,मोज़े, गुलबन्द
हो सकता है
सरदी उतरने से पहले
चल दूँ मैं
मेरे चले जाने पर
बहुत लोग आएँगे घर में
उन सब के बिस्तर
वहीं होंगे अरगनी पर
हर किसी को मत देना
अपने बिस्तर।
उस आले से
उठा लिया है मैंने
अपना सारा सामाह
काजल कँघी सिंदूर
चाहो तो वहाँ रख लेना
अपनी पोथियाँ
या मेरा फ़ोटू
खाली जगह अच्छी नहीं लगगी
मकड़ियाँ जाले बुन लेती हैँ
तुम सबको फुर्सत कहाँ होगी
दफ्तर और स्कूलों से
ये डिब्बे भर रख जाती हूँ
बड़ियाँ हैं पापड़ हैं
सुखा रखें हैं पिछली गर्मियों में
ढँग से बरतो तो
चल निकलेंगे
साल दो साल
यह जो सँदूक है काला
इसे चाहो तो ठहर कर खोलना
सोना-रूपा के लिये
काढ़ी थीं कुछ ओढ़नियाँ
उन सूने लब्दे दिनों में
जब पेट में गोपू था
वैद जी कहते थे
विस्तर पर रहना बहू
प्रसव कुछ टेढ़ा है
लगता है अब यही महीना
तुम्हारे सँग हूँ
कुछ और लकड़ियाँ डल वालो
कुछ तो बक्त लगेगा सूखने में
फिर घर भर में लोग रहेंगे
सब साथी-सँगी सगे संबंधी
अब रोने-धोने में
कैसे कलपोगे
कौन फूँकेगा
गीली लकड़ियों से चूल्हा
अकेले रहना होगा
तुम्हें ही सब करना होगा
रोटी-पानी सभी कुछ
आओ
पास बैठो
ऐसे जैसे
बैठोगे तब
जब मैं उठ जाँऊँगी।
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