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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप सेठी }} <Poem> मेरा भी स्कूटर डोलने लगा है दाएँ-ब...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनूप सेठी
}}
<Poem>
मेरा भी स्कूटर डोलने लगा है दाएँ-बाएँ
क्या एक उम्र के बाद ऐसा होता है?
जैसे जरा सा ज्यादा मुड़ गया हैंडल तो लगता है
सारा तूम तमाड़ सड़क पे बिछ जाएगा पलक झपकते
बैठा करते थे बच्चे पहले आगे फिर पीछे
क्या एक उम्र के बाद ऐसा भी होता है?
हम रह गए खड़े के खड़े वहीं
वे यह ले वह ले उड़ गए हवा से बातें करते
मिलेंगे अजनबियों जैसे अपनी ही दुनिया में रमे हुए
पीने लगा है तेल बहुत और ठल ठल करता रहता है
क्या एक उम्र के बाद ऐसा ही होता है?
घुटने अड़ने लगते हैं, चश्मे चढ़ने लगते हैं
बातें जो कहनी हैं, रह जाती हैं
अर्थ समझ में पहले से ज्यादा आने लगते हैं
फूल तोड़ना चाहते थे, अब डाली पर ही भाता है
समझ नहीं कुछ आता पर
जीवन का ऐसा क्या अर्थ हाथ लग जाता है !
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अनूप सेठी
}}
<Poem>
मेरा भी स्कूटर डोलने लगा है दाएँ-बाएँ
क्या एक उम्र के बाद ऐसा होता है?
जैसे जरा सा ज्यादा मुड़ गया हैंडल तो लगता है
सारा तूम तमाड़ सड़क पे बिछ जाएगा पलक झपकते
बैठा करते थे बच्चे पहले आगे फिर पीछे
क्या एक उम्र के बाद ऐसा भी होता है?
हम रह गए खड़े के खड़े वहीं
वे यह ले वह ले उड़ गए हवा से बातें करते
मिलेंगे अजनबियों जैसे अपनी ही दुनिया में रमे हुए
पीने लगा है तेल बहुत और ठल ठल करता रहता है
क्या एक उम्र के बाद ऐसा ही होता है?
घुटने अड़ने लगते हैं, चश्मे चढ़ने लगते हैं
बातें जो कहनी हैं, रह जाती हैं
अर्थ समझ में पहले से ज्यादा आने लगते हैं
फूल तोड़ना चाहते थे, अब डाली पर ही भाता है
समझ नहीं कुछ आता पर
जीवन का ऐसा क्या अर्थ हाथ लग जाता है !
</poem>