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{{KKRachna
|रचनाकार=राजेश जोशी
|संग्रह=एक दिन बोलेंगे पेड़ / राजेश जोशी
}}
<poem>
हम हर रात
पैर धोकर सोते है
::करवट होकर।
::छाती पर हाथ बाँधकर
चित्त
हम कभी नहीं सोते।
हम हर रात <br>सोने से पहलेपैर धोकर सोते माँटुइयाँ के तकिये के नीचे::सरौता रख देती है<br>करवट होकर।<br>::बिना नागा।छाती पर हाथ बाँधकर<br>माँ कहती है चित्त<br>डरावने सपने इससे हम कभी नहीं सोते।<br><br>::डर जाते है।
सोने से पहले<br>माँ<br>टुइयाँ के तकिये के नीचे<br>सरौता रख देती है<br>बिला नागा<br>माँ कहती है <br>डरावने सपने इससे<br> डर जाते है।<br><br> दिन -भर <br>फिरकनी -सी खटती<br>माँ <br>हमारे सपनों के लिए<br>
कितनी चिन्तित है!
</poem>
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