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<br>चौ०-जदपि जोषिता नहिं अधिकारी। दासी मन क्रम बचन तुम्हारी॥
<br>गूढ़उ तत्व न साधु दुरावहिं। आरत अधिकारी जहँ पावहिं॥पावहिं॥१॥
<br>अति आरति पूछउँ सुरराया। रघुपति कथा कहहु करि दाया॥
<br>प्रथम सो कारन कहहु बिचारी। निर्गुन ब्रह्म सगुन बपु धारी॥२॥
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