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नृप जुबराज राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू।।४।। <br>
दो0-यह बिचारु उर आनि नृप सुदिनु सुअवसरु पाइ।<br>
कहइ भुआलु सुनिअ मुनिनायक। भए राम सब बिधि सब लायक।।<br>
सेवक सचिव सकल पुरबासी। जे हमारे अरि मित्र उदासी।। १ ।। <br><br>
मुनि प्रसन्न लखि सहज सनेहू। कहेउ नरेस रजायसु देहू।।४।। <br>
दो0-राजन राउर नामु जसु सब अभिमत दातार।<br>
सब बिधि गुरु प्रसन्न जियँ जानी। बोलेउ राउ रहँसि मृदु बानी।।<br>
नाथ रामु करिअहिं जुबराजू। कहिअ कृपा करि करिअ समाजू।। १ ।। <br>
भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी। रामु पुनीत प्रेम अनुगामी।।<४।।br>
दो0-बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु।<br>
मुदित महिपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्रु बोलाए।।<br>
कहि जयजीव सीस तिन्ह नाए। भूप सुमंगल बचन सुनाए।। १ ।। <br>
नृपहि मोदु सुनि सचिव सुभाषा। बढ़त बौंड़ जनु लही सुसाखा।।४।। <br>
दो0-कहेउ भूप मुनिराज कर जोइ जोइ आयसु होइ।<br>
हरषि मुनीस कहेउ मृदु बानी। आनहु सकल सुतीरथ पानी।।<br>
औषध मूल फूल फल पाना। कहे नाम गनि मंगल नाना।। १ ।। <br>
पूजहु गनपति गुर कुलदेवा। सब बिधि करहु भूमिसुर सेवा।।४।।<br>
दो0-ध्वज पताक तोरन कलस सजहु तुरग रथ नाग।<br>
जो मुनीस जेहि आयसु दीन्हा। सो तेहिं काजु प्रथम जनु कीन्हा।।<br>
बिप्र साधु सुर पूजत राजा। करत राम हित मंगल काजा।।<br>
आयसु होइ सो करौं गोसाई। सेवक लहइ स्वामि सेवकाई।।<br>
दो0-सुनि सनेह साने बचन मुनि रघुबरहि प्रसंस।<br>
बरनि राम गुन सीलु सुभाऊ। बोले प्रेम पुलकि मुनिराऊ।।<br>
भूप सजेउ अभिषेक समाजू। चाहत देन तुम्हहि जुबराजू।।<br>
प्रभु सप्रेम पछितानि सुहाई। हरउ भगत मन कै कुटिलाई।।<br>
दो0-तेहि अवसर आए लखन मगन प्रेम आनंद।<br>
बाजहिं बाजने बिबिध बिधाना। पुर प्रमोदु नहिं जाइ बखाना।।<br />
भरत आगमनु सकल मनावहिं। आवहुँ बेगि नयन फलु पावहिं।।<br />