भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
}}
<poem>
गले मुझको लगा लो ऐ दिलदार होली में
बुझे दिल की लगी भी तो ऐ यार होली में
गले मुझको लगा लो ए दिलदार नहीं ये है गुलाले-सुर्ख उड़ता हर जगह प्यारेये आशिक की है उमड़ी आहें आतिशबार होली में
बुझे दिल की लगी गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी तो ए याए जमाने दोमनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में ।।
है रंगत जाफ़रानी रुख अबीरी कुमकुम कुछ हैबने हो ख़ुद ही होली तुम ऐ दिलदार होली में
नहीं यह है गुलाले सुर्ख उड़ता हर जगह प्यारे,  य आशिक ही है उमड़ी आहें आतिशबार होली में ।    गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो,  मनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में ।    है रंगत जाफ़रानी रुख अबीरी कुमकुम कुच है,  बने हो ख़ुद ही होली तुम ए दिलदार होली में ।    रसा रस गर जामे-मय गैरों को देते हो तो मुझको भी,  नशीली आँख दिखाकर करो सरशार होली में </poem>