भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सपने अपने-अपने / तेज राम शर्मा

2,720 bytes added, 09:36, 4 फ़रवरी 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तेज राम शर्मा |संग्रह=बंदनवार / तेज राम शर्मा}} [[Cate...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=तेज राम शर्मा
|संग्रह=बंदनवार / तेज राम शर्मा}}
[[Category:कविता]]
<poem>
बालक ने सपना देखा
उड़ गया वह आकाश में
पीठ से फिसला उसका बस्ता
एक-एक कर आसमान से गिरी
पुस्तकें और काँपियाँ
देख कर मुस्कराया और उड़ता रहा
फिर गिरा आँखों से उसका चश्मा
धरती इतनी सुंदर है
उसने कभी सपने में भी न सोचा था

युवा ने सपना देखा
हवाई जहाज़ से
उसने लगाई छलांग
करतब दिखाता हुआ
निर्भय गिरता रहा धरती की ओर
जंगल जब तेजी से उसके पास आया
तो उसने पैराशूट खोल दिया
हवा का एक तेज़ झोंका
उसे राह से विचलित कर गया
पैराशूट को नियंत्रित करता हुआ
साहस के साथ वह
पेड़ों से घिरी चारागाह में उतरा
वहाँ एक युवती दौड़कर उसके पास आई
और प्यार भरी आँखों से उसे देखने लगी
सपने में ही अपना सिर उसकी गोद में रखकर
वह जीने के सपने देखने लगा

बूढ़े ने सपना देखा
सुबह-सुबह नदी स्नान करते हुए
फिसला जाता है उसका पाँव
वह नदी में डूबने लगता है
शिथिल इन्द्रियोँ से
छटपताता है बाहर निकलने के लिए
अपने-पराये कोई नहीं सुनते उसकी चीख
सब कुछ छूटता नज़र आता है
जैसे ही अंतिम साँस निकलने को होती है
बिस्तर पर जाग पड़ता है वह भयानक सपने से
काँपते हाथों से पानी पीता है और
सपने देखने से डरने लगता है।
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits