भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव }} <poem> ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
कहा पतंगे ने
उड़ूँगा अब
ऊँचे और ऊँचे
चख़ लिया है मैंने
आसमान का स्वाद
आसमान के बदलते
रँगों के संग-संग
बदल सकता हूँ
मैं भी पल-पल अपने रंग
मटमैले रंगों के संग
रहते-रहते
झड़ते जा रहे थे एक-एक कर
मेरी महत्त्वाकांक्षा के पँख
धरती आख़िर है ही क्या
मात्र एक सीढ़ी भर
उसका काम ही है
चढ़ने वालों के लिए प्रस्तुत रहना
और अपनी ऊंचाई की
सीमा को सहना
इसलिए अब मैं उड़ूँगा
ऊँचे और ऊँचे
ऊँचाइयों ने मुझमें
एक ढंग बो दिया है
अपने कद से बड़ा होने का।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
कहा पतंगे ने
उड़ूँगा अब
ऊँचे और ऊँचे
चख़ लिया है मैंने
आसमान का स्वाद
आसमान के बदलते
रँगों के संग-संग
बदल सकता हूँ
मैं भी पल-पल अपने रंग
मटमैले रंगों के संग
रहते-रहते
झड़ते जा रहे थे एक-एक कर
मेरी महत्त्वाकांक्षा के पँख
धरती आख़िर है ही क्या
मात्र एक सीढ़ी भर
उसका काम ही है
चढ़ने वालों के लिए प्रस्तुत रहना
और अपनी ऊंचाई की
सीमा को सहना
इसलिए अब मैं उड़ूँगा
ऊँचे और ऊँचे
ऊँचाइयों ने मुझमें
एक ढंग बो दिया है
अपने कद से बड़ा होने का।
</poem>