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कथन / केशव

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तुम कहती हो
छूना नहीं मुझे
छूने से हम
थोड़ा पराये हो जाते हैं
मैं कहता हूँ
स्पर्श तो ब्रह्म है
आज तक हम गुज़रते रहे
इसमें से होकर
अब इसे
हमसे होकर गुज़रने दो
मन से होकर गुज़रेगा
जब-जब
देह से थोड़ा-थोड़ा कर
ऊपर उठेंगे हम।
</poem>
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