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करतब / केशव

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दिल के इस
सुनसान प्रदेश में
जो तुम्हारी ही
इच्छा का अंकुर है
आई हो फिर से तुम
अपने करतब दिखाने
नहीं मालूम
कोई आता है दुबारा
इस तरह भी
गुलमोहर खिलाने

मेरे इस एकान्त में
तुम एक अनुपस्थिति
मेरे अँधेरे में
एक आहट
जिसे छूने के लिए
उठाता हूँ हाथ
उंगलियाँ
तब्दील हो जाती हैं
अचानक मुट्ठी में।
</poem>
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