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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मला पुतुल |संग्रह= }} <Poem> इस उम्मीद से कि उसमे...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निर्मला पुतुल
|संग्रह=
}}
<Poem>
इस उम्मीद से कि उसमें फूल खिलेंगे
लेकिन अफ़सोस कि उसमें काँटें ही निकले
मैं सींचती रोज़ सुबह-शाम
और देखती रही उसका तेज़ी से बढ़ना।
वह तेज़ी सेबढ़ा भी
पर उसमें फूल नहीं आए
वो फूल जिससे मेरे सपने जुड़े थे
जिससे मै जुड़ी थी
पर लम्बी प्रतीक्षा के बाद भी
उसमें फूल का नहीं आना
मेरे सपनों का मर जाना था।
एक दिन लगा कि मैं
इसे उखाड़कर फेंक दूँ
और इसकी जगह दूसरा फूल लगा दूँ
पर सोचती हूँ बार-बार उखाड़कर फेंक देने
और उसकी जगह नए फूल लगा देने से
क्या मेरी ज़िन्दगी के सारे काँटें निकल जाएंगे?
हक़ीकत तो यह है कि
चाहे जितने फूल बदल दें हम
लेकिन कुछ फूलों की नियति ही ऎसी होती है
जो फूल की जगह काँटें लेकर आते हैं
शायद मेरे आँगन में लगा गुलब भी
कुछ ऎसा ही है मेरी ज़िन्दगी के लिए।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=निर्मला पुतुल
|संग्रह=
}}
<Poem>
इस उम्मीद से कि उसमें फूल खिलेंगे
लेकिन अफ़सोस कि उसमें काँटें ही निकले
मैं सींचती रोज़ सुबह-शाम
और देखती रही उसका तेज़ी से बढ़ना।
वह तेज़ी सेबढ़ा भी
पर उसमें फूल नहीं आए
वो फूल जिससे मेरे सपने जुड़े थे
जिससे मै जुड़ी थी
पर लम्बी प्रतीक्षा के बाद भी
उसमें फूल का नहीं आना
मेरे सपनों का मर जाना था।
एक दिन लगा कि मैं
इसे उखाड़कर फेंक दूँ
और इसकी जगह दूसरा फूल लगा दूँ
पर सोचती हूँ बार-बार उखाड़कर फेंक देने
और उसकी जगह नए फूल लगा देने से
क्या मेरी ज़िन्दगी के सारे काँटें निकल जाएंगे?
हक़ीकत तो यह है कि
चाहे जितने फूल बदल दें हम
लेकिन कुछ फूलों की नियति ही ऎसी होती है
जो फूल की जगह काँटें लेकर आते हैं
शायद मेरे आँगन में लगा गुलब भी
कुछ ऎसा ही है मेरी ज़िन्दगी के लिए।
</poem>