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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहींमांगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझेमेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं <br>जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भरमांगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा भेजा वही काग़ज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं <br><br>
देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे <br>इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तकमेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं <br><br>
जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर <br>दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगाभेजा वही जब आग पर काग़ज़ उसे हमने लिखा रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं <br><br>
इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक <br>आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं <br><br> दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगा <br>जब आग पर काग़ज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं <br><br> अहसास की ख़ुश्बू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ <br>ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं <br><br/poem>