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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
[[Category:कविता]]
<poem>
पेड़ों से जब पत्ते गिरते हैं तो,
उसको "पतझड़" कहते हैं,
और जब नये फूल खिलते हैं तो,
उसको "वसन्त" कहते हैं,
दूर मिलने का अभास लिए
जब धरती गगन मिलते हैं,
तो उसे "क्षितिज" कहते हैं
पर,
तेरा मेरा मिलना क्या है .....?
इसे न तो "वसन्त",
न तो "पतझड़",
और न "क्षितिज" कहते हैं!
यह तो सिर्फ़ एक अहसास है,
अहसास,
कुछ नही, एक पगडंडी है,
तुमसे मुझ तक आती हुई,
मैं और तुम,
तुम और मैं,
जिसके आगे शून्य है सब.........
<poem>
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|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
[[Category:कविता]]
<poem>
पेड़ों से जब पत्ते गिरते हैं तो,
उसको "पतझड़" कहते हैं,
और जब नये फूल खिलते हैं तो,
उसको "वसन्त" कहते हैं,
दूर मिलने का अभास लिए
जब धरती गगन मिलते हैं,
तो उसे "क्षितिज" कहते हैं
पर,
तेरा मेरा मिलना क्या है .....?
इसे न तो "वसन्त",
न तो "पतझड़",
और न "क्षितिज" कहते हैं!
यह तो सिर्फ़ एक अहसास है,
अहसास,
कुछ नही, एक पगडंडी है,
तुमसे मुझ तक आती हुई,
मैं और तुम,
तुम और मैं,
जिसके आगे शून्य है सब.........
<poem>