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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सौरीन्‍द्र बारिक |संग्रह=}}<Poem> आज नाराज नाराज़ होने से क्‍या होगा
तुमने ही तो मुझे कविता लिखना सिखाया है
याद है न !
चुपचाप मेरी कापी से कविता पढ पढ़ रही थीऔर तुम्‍हारे पढने पढ़ने के लिए ही लिख रहा था मैं
चांद उगने पर कुईं खिले बिना रह सकती है कभी ?
तुम्‍हें कैसे मालूम होगा कि
मैं कविता की खातिर कितनी बार मरता हूंहूँऔर जीता हूं। हूँ। और किसी वैराग्‍य-आसक्ति मेंजल-जल कर राख हो जाता हूं।हू~म।
आज नाराज नाराज़ होने पर क्‍या होगा
तुमने ही तो मुझे कविता लिखना सिखाया है।
'''उडि़या से अनुवाद - वनमाली दास</poem>
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