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वे अब भी हँस रहे हैं / आग्नेय

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|रचनाकार=आग्नेय
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<Poem>
अब नहीं चमकता है चन्द्रमा
बुझ चुकी है
शाम से जलने वाली आग
घुप्प अंधेरे में
वे सब हँस रहे हैं
उनके साथ हँस रहे हैं
उनके बच्चे, उनकी बकरियाँ
उनके गदहे और उनके कुत्ते
मेरे घर और उनके घुप्प अंधेरे के बीच
पसरी है एक सड़क
दस क़दमों में पार की जा सकने वाली सड़क
उनका हँसना,
चट कर जाएगा
मेरा घर, मेरा सुख-संसार
रोकना है मुझे
उनकी हँसी को
बना देना है
सड़क से आकाश तक जाने वाली दीवार
दीवार के उस पार
अब भी हँस रहे हैं
नष्ट हो चुकी है
दीवार बनाए जाने की अन्तिम सम्भावना
वे सब अब भी हँस रहे हैं।
</poem>