भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKPoemOfTheWeek

50 bytes added, 09:30, 25 फ़रवरी 2009
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
<!----BOX CONTENT STARTS------>
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''मांझी ! अब देखिये बजाओ बंशीमेरी कारगुज़ारी<br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[केदारनाथ अग्रवालअज्ञेय]]
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
मांझी ! अब देखिये बजाओ बंशी मेरा मन डोलता मेरी कारगुज़ारीकि मैं मँगनी के घोड़े परमेरा मन डोलता है जैसे जल डोलता सवारी परठाकुर साहब के लिए उन की रियाया से लगानजल का जहाज जैसे पलऔर सेठ साहब के लिए पंसार-पल डोलता हट्टे की हर दुकानसे किरायामांझी ! न बजाओ बंशी मेरा प्रन टूटता वसूल कर लाया हूँ ।थैली वाले को थैलीमेरा प्रन टूटता है जैसे तृन टूटता तोड़े वाले को तोड़ा-और घोड़े वाले को घोड़ातृन सब को सब का निवास जैसे बन-बन टूटता लौटा दियाअब मेरे पास यह घमंड हैमांझी ! न बजाओ बंशी कि सारा समाज मेरा तन झूमता  मेरा तन झूमता एहसानमन्द है तेरा तन झूमता  मेरा तन तेरा तन एक बन झूमता ।   
</pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,730
edits