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{{KKRachna
|रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा
}}
<poem>
तुम
अकारण रो पड़े--
हमें तो
टूटा सा दिल
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया--
तुम
अकारण रो पड़े--
बारिश में भीगते
शरीरों की भीड़ में
हमें तो
बचपन
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया---
तुम
अकारण रो पड़े--
दोपहर देख
ढलती उम्र की
दहलीज़ पर
हमें तो
यौवन
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया--
तुम
अकारण रो पड़े--
उदास समंदर के किनारे
सूनी आँखों से
हमें तो
अधूरा सा
धरौंदा
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया--
तुम
अकारण रो पड़े--
धुँधली आँखों से
सुलगती लकड़ियाँ देख
हमें तो
कोई
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया--
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा
}}
<poem>
तुम
अकारण रो पड़े--
हमें तो
टूटा सा दिल
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया--
तुम
अकारण रो पड़े--
बारिश में भीगते
शरीरों की भीड़ में
हमें तो
बचपन
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया---
तुम
अकारण रो पड़े--
दोपहर देख
ढलती उम्र की
दहलीज़ पर
हमें तो
यौवन
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया--
तुम
अकारण रो पड़े--
उदास समंदर के किनारे
सूनी आँखों से
हमें तो
अधूरा सा
धरौंदा
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया--
तुम
अकारण रो पड़े--
धुँधली आँखों से
सुलगती लकड़ियाँ देख
हमें तो
कोई
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया--
</poem>