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{{KKRachna
|रचनाकार=उदयप्रताप सिंह
}}
<poem>
स्वर्ग से पतित सुर-सरिता को शीश धर
भाल पे बिठा लिया मयंक ये प्रमाण है ।
लोकहित में समस्त जगती का विष पिया
खल-बल को तृ्तीय नेत्र विद्यमान है ।
प्रेम वशीभूत भूतनाथ के भुजंग संग
नदिया तो गिरिजा गनेश के समान हैं ।
भोलानाथ महादेव औघड़ प्रसन्न हों तो
भूल जाते कौन भक्त, कौन भगवान हैं ।
</poem>
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|रचनाकार=उदयप्रताप सिंह
}}
<poem>
स्वर्ग से पतित सुर-सरिता को शीश धर
भाल पे बिठा लिया मयंक ये प्रमाण है ।
लोकहित में समस्त जगती का विष पिया
खल-बल को तृ्तीय नेत्र विद्यमान है ।
प्रेम वशीभूत भूतनाथ के भुजंग संग
नदिया तो गिरिजा गनेश के समान हैं ।
भोलानाथ महादेव औघड़ प्रसन्न हों तो
भूल जाते कौन भक्त, कौन भगवान हैं ।
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