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मुझ में यह सामर्थ्य नहीं है मैं कविता कर पाऊँ,<br>
या कूँची में रंगों ही का स्वर्ण-वितान बनाऊँ ।<br>
साधन इतनें नहीं कि पत्थर के प्रसाद प्रासाद खड़े कर-<br>
तेरा, अपना और प्यार का नाम अमर कर जाऊँ।<br><br>
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