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{{KKRachna
|रचनाकार=शिरीष कुमार मौर्य
|संग्रह=पृथ्वी पर एक जगह / शिरीष कुमार मौर्य}}
<poem>
उस सर्द अंधेरी दिसम्बरी रात की
छाती पर
नई-नई चमचमाती कीलों-से
तारे जड़े थे
और पृथ्वी के उस नगण्य-से कोने में
पतली डगालों पर
फले थे सन्तरे
कच्चे और हरे
जब मैं पैदा हुआ
एक बेरोज़गार और हताश आदमी के जीवन में
उसके पहले खुशनुमा स्वप्न की तरह
कुछ अजीबोग़रीब उत्सव भी मनाए गए
मेरे पैदा होने पर
मेरे पैदा होने की जगह से बहुत दूर
तार पहुँचते ही
बीमार दादा ने बेच दी
बची-खुची ज़मीन
और दोस्तों को दिया एक शानदार भोज
जिसमें बकरे का माँस और अंग्रेज़ी शराब भी थी
यों अपने सबसे बुरे वक़्त में भी
उन्होंने
अभी-अभी जन्मे अपने पहले पोते की
अगवानी की
दादी ने जो औरत होने के नाते सिर्फ़ देवी को ही पूजती थी
किया लगातार तीन दिनों तक देवी का पाठ
उस शहर का नाम नागपुर था
जहाँ मैं पैदा हुआ
और अब मुझे सिर्फ नाम ही याद है
लेकिन पिता को याद है
सभी कुछ -
तामसकर क्लीनिक
उनकी बनायी नर्सों और बैरों की पहली ट्रेड यूनियन
सीताबर्डी रोड
आपतुरे का बाड़ा
कोयले की सबसे बड़ी टाल
जुम्मा तलाब
भाऊ समर्थ
स्वामी कृष्णानन्द सोख़्ता
नया खून
और इस दृश्यलेख से अनुपस्थित
बीते हुए समय में
दूर कहीं
बेहद चुपचाप खटते
मुक्तिबोध भी
पिता को याद है
रोज़ नियम से शाम पाँच बजे बजने वाला
मिल का सायरन
मेरे साथ ही जन्मे सिंह-शावकों वाला
चिड़ियाघर
महाराजा बाग़
और उसके ठीक सामने
उनके विश्वविद्यालय का आधा बन्द आधा खुला
विशाल द्वार
उन्हें सब कुछ याद है
मुझे कुछ भी याद नहीं
जवानी की दहलीज़ पर क़दम रखते ही एक दिन
अचानक
मेरे प्रेम पड़ जाने के सनसनी खेज़ खुलासे के बाद
चौराहे पर अपमानित होने जाने के
एक कल्पित भय
और उतने ही अकल्पित क्रोध के साथ
लगभग काँपते हुए
एक सुर में चीखकर सुनाया था उन्होंने
यह सभी कुछ
...............बाक़ी का सारा जीवन तो
इसके बाद है
कितना हैरतअंगेज़ है यह
कि मुझे कुछ भी याद न होने के बावजूद
यही तो मेरी अपनी याद है !
</poem>
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|रचनाकार=शिरीष कुमार मौर्य
|संग्रह=पृथ्वी पर एक जगह / शिरीष कुमार मौर्य}}
<poem>
उस सर्द अंधेरी दिसम्बरी रात की
छाती पर
नई-नई चमचमाती कीलों-से
तारे जड़े थे
और पृथ्वी के उस नगण्य-से कोने में
पतली डगालों पर
फले थे सन्तरे
कच्चे और हरे
जब मैं पैदा हुआ
एक बेरोज़गार और हताश आदमी के जीवन में
उसके पहले खुशनुमा स्वप्न की तरह
कुछ अजीबोग़रीब उत्सव भी मनाए गए
मेरे पैदा होने पर
मेरे पैदा होने की जगह से बहुत दूर
तार पहुँचते ही
बीमार दादा ने बेच दी
बची-खुची ज़मीन
और दोस्तों को दिया एक शानदार भोज
जिसमें बकरे का माँस और अंग्रेज़ी शराब भी थी
यों अपने सबसे बुरे वक़्त में भी
उन्होंने
अभी-अभी जन्मे अपने पहले पोते की
अगवानी की
दादी ने जो औरत होने के नाते सिर्फ़ देवी को ही पूजती थी
किया लगातार तीन दिनों तक देवी का पाठ
उस शहर का नाम नागपुर था
जहाँ मैं पैदा हुआ
और अब मुझे सिर्फ नाम ही याद है
लेकिन पिता को याद है
सभी कुछ -
तामसकर क्लीनिक
उनकी बनायी नर्सों और बैरों की पहली ट्रेड यूनियन
सीताबर्डी रोड
आपतुरे का बाड़ा
कोयले की सबसे बड़ी टाल
जुम्मा तलाब
भाऊ समर्थ
स्वामी कृष्णानन्द सोख़्ता
नया खून
और इस दृश्यलेख से अनुपस्थित
बीते हुए समय में
दूर कहीं
बेहद चुपचाप खटते
मुक्तिबोध भी
पिता को याद है
रोज़ नियम से शाम पाँच बजे बजने वाला
मिल का सायरन
मेरे साथ ही जन्मे सिंह-शावकों वाला
चिड़ियाघर
महाराजा बाग़
और उसके ठीक सामने
उनके विश्वविद्यालय का आधा बन्द आधा खुला
विशाल द्वार
उन्हें सब कुछ याद है
मुझे कुछ भी याद नहीं
जवानी की दहलीज़ पर क़दम रखते ही एक दिन
अचानक
मेरे प्रेम पड़ जाने के सनसनी खेज़ खुलासे के बाद
चौराहे पर अपमानित होने जाने के
एक कल्पित भय
और उतने ही अकल्पित क्रोध के साथ
लगभग काँपते हुए
एक सुर में चीखकर सुनाया था उन्होंने
यह सभी कुछ
...............बाक़ी का सारा जीवन तो
इसके बाद है
कितना हैरतअंगेज़ है यह
कि मुझे कुछ भी याद न होने के बावजूद
यही तो मेरी अपनी याद है !
</poem>