भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’ }} <poem> नहीं भागते हुए जलद क...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’
}}
<poem>
नहीं भागते हुए जलद के संग भागता नभ मधुकर
चलते तन के संग न चलता कभीं मनस्वी मन निर्झर
किससे क्या लेना देना तेरा तो सच्चा से नाता
टेर रहा अपनत्ववर्षिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।71।।
प्रेम भरे लोचन प्रियतम के हित ही खोल रसिक मधुकर
और कहाँ रस रसाभास का बहता व्यभिचारी निर्झर
विश्व वाटिका के माली को दे दे अपने प्राण सुमन
टेर रहा प्रबलपिपासा मुरली तेरा मुरलीधर।।72।।
विरह ताप से प्राणनाथ के तू न कभीं तड़पा मधुकर
क्षुधित तृषित ज्यों वारि असन हित फिरता विकल व्यथित निर्झर
रे कर दे पाताल गगन को एक कृष्ण प्रेमी पगले
टेर रहा पुरुषार्थरुपिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।73।।
तेरा चिंतन ही है तेरे प्राणों का दर्पण मधुकर
उससे कहाँ छिपाना जिसने देखा सारा तन निर्झर
अंतर्मुख हो बैठ पास में उसके मृदुल पलोट चरण
टेर रहा है हृदयवल्लभा मुरली तेरा मुरलीधर।।74।।
मनतरंग निग्रह में बहता है आनन्द परम मधुकर
यह अनुभव होते ही क्षण में होता मन नीरस निर्झर
प्रभु चिन्तन ही विधि जग चिन्तन है निषेधमय पथ पंकिल
टेर रहा है विधिविधायिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।75।।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’
}}
<poem>
नहीं भागते हुए जलद के संग भागता नभ मधुकर
चलते तन के संग न चलता कभीं मनस्वी मन निर्झर
किससे क्या लेना देना तेरा तो सच्चा से नाता
टेर रहा अपनत्ववर्षिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।71।।
प्रेम भरे लोचन प्रियतम के हित ही खोल रसिक मधुकर
और कहाँ रस रसाभास का बहता व्यभिचारी निर्झर
विश्व वाटिका के माली को दे दे अपने प्राण सुमन
टेर रहा प्रबलपिपासा मुरली तेरा मुरलीधर।।72।।
विरह ताप से प्राणनाथ के तू न कभीं तड़पा मधुकर
क्षुधित तृषित ज्यों वारि असन हित फिरता विकल व्यथित निर्झर
रे कर दे पाताल गगन को एक कृष्ण प्रेमी पगले
टेर रहा पुरुषार्थरुपिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।73।।
तेरा चिंतन ही है तेरे प्राणों का दर्पण मधुकर
उससे कहाँ छिपाना जिसने देखा सारा तन निर्झर
अंतर्मुख हो बैठ पास में उसके मृदुल पलोट चरण
टेर रहा है हृदयवल्लभा मुरली तेरा मुरलीधर।।74।।
मनतरंग निग्रह में बहता है आनन्द परम मधुकर
यह अनुभव होते ही क्षण में होता मन नीरस निर्झर
प्रभु चिन्तन ही विधि जग चिन्तन है निषेधमय पथ पंकिल
टेर रहा है विधिविधायिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।75।।
</poem>