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Kavita Kosh से
न्याय के द्वन्द्व से परे घूमती पृथ्वी
तहस-नहस कर देती है पूरी बस्ती को
उखाड़ फेंकती है सबकी साँसें
विचारों के द्वन्द्व से परे नीला आकाश