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धुँधली हुई दीशाएँदिशाएँ, छाने लगा कुहासा,<br>कुचली हुई शीखा शिखा से आने लगा धुआँसा।<br>
कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है,<br>
मुंह को छीपा तीमीर छिपा तिमिर में क्यों तेज सो रहा है?<br>दाता पुकार मेरी, संदीप्ती संदीप्ति को जीला जिला दे,<br>बुझती हुई शीखा शिखा को संजीवनी पिला दे।<br>प्यारे स्वदेश के हीत हित अँगार माँगता हूँ।<br>चढ़ती जवानीयोँ जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ।<br><br>
बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है,<br>
कोई नहीं बताता, कीश्ती कीधर किश्ती किधर चली है?<br>मँझदार है, भँवर है या पास है कीनाराकिनारा?<br>यह नाश आ रहा है या सौभाग्य का सीतारा सितारा?<br>
आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा,<br>
भगवान, इस तरी को भरमा न दे अँधेरा।<br>
ध्रुव की कठिन घड़ी में, पहचान माँगता हूँ।<br><br>
अग्निस्फुलिंग रज का, बुझ ढेर हो रहा है,<br>
है रो रही जवानी, अँधेर हो रहा है!<br>
पंचास्यनाद भीषण, विकराल माँगता हूँ।<br>
जड़ताविनाश को फिर भूचाल माँगता हूँ।<br><br>