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|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
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<Poem>
हो न जाए मान में घाटा किसी के यों
सत्य कहने पर यहाँ प्रतिबन्ध है भैया

चोर को अब चोर कहना जुर्म है भारी
तस्करों का तख्त से सम्बन्ध है भैया

कलम सोने की सजी है उँगलियों में तो
हथकड़ी भूषित मगर मणिबंध है भैया

लोग इमला लिख रहे हैं भाषणों का ही
भाग्यलेखों का यही उपबंध है भैया

ज्योतिषीगण बाढ़ की चेतावनी दे दें!
ज्वार से ढहने लगा तटबंध है भैया </Poem>