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{{KKRachna
|रचनाकार= उद्भ्रान्त
}}
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यह
पूर्णिमा है
उजली
धवल रात
मुझ से
तुम तक
लहराती
गहराती
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यह
पूर्णिमा है
उजली
धवल रात
मुझ से
तुम तक
लहराती
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