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{{KKRachna
|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
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[[Category:ग़ज़ल]]
इसी चमन में ही हमारा भी इक ज़माना था
यहीं कहीं कोई सादा सा आशियाना था
नसीब अब तो नहीं शा ख़ शाख़ भी नशेमन की
लदा हुआ कभी फूलों से आशियाना था
तुम्हीं गुज़र गये दामन बचाकर वर्ना यहाँ
वही शबब वही दिल वही ज़माना था
</poem>