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|रचनाकार=रामधारी सिंह '"दिनकर'"}}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 11|आगे=रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 13|संग्रहसारणी= रश्मिरथी / रामधारी सिंह '"दिनकर'"
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कर्ण विकल हो खड़ा हुआ कह, 'हाय! किया यह क्या गुरुवर?
सोच-सोच यह बहुत विकल हो रहा, नहीं जानें क्यों मन?
 
देखो मत यों सजल दृष्टि से, व्रत मेरा मत भंग करो।
 
 
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