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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" }}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 6|आगे=रश्मिरथी / पंचम सर्ग / भाग 1|संग्रहसारणी= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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'हाँ, पड़ पुत्र-प्रेम में आया था छल ही करने को,
दे अमोघ शर-दान सिधारे देवराज अम्बर को,
व्रत का अंतिम मूल्य चुका कर गया कर्ण निज घर को.   [[रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 6|<< चतुर्थ सर्ग / भाग 6]]