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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" }}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 7|आगे=रश्मिरथी / पंचम सर्ग / भाग 2|संग्रहसारणी= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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आ गया काल विकराल शान्ति के क्षय का,
भर कर ममता-पय से निष्पलक नयन को,
वह खड़ी सींचती रही पुत्र के तन को.  [[रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 7|<< चतुर्थ सर्ग / भाग 7]] | [[रश्मिरथी / पंचम सर्ग / भाग 2| पंचम सर्ग / भाग 2 >>]]