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Kavita Kosh से
जो ज़ीस्त को न समझे जो मौत को न जाने <br>
जीना उंहीं उन्हीं का जीना मरना उंहीं उन्हीं का मरना <br><br>
हरियाली ज़िन्दगी पे सदक़े हज़ार जाने <br>