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[[Category:ग़ज़ल]]
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कुछ इम्तहानेइम्तहान-दस्तेए-दस्त-ए-जफ़ा कर चुके हैं हम
कुछ उनकी दस्तरस का पता कर चुके हैं हम
अब एहतियात की कोई सूरत नहीं रही
क़ातिल से रस्मोरस्म-ओ-राह सिवा कर चुके हैं हम
देखें है कौन-कौन, ज़रूरत नहीं रही
कू-ए-सितम में सबको खफ़ा कर चुके हैं हम
अब अपना इख्तियार है चाहे जहां जहाँ चलें
रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम
उनकी नज़र में क्या करें फीका है अब भी रंग
जितना लहू था सर्फेसर्फ-ए-क़बा कर चुके हैं हम
कुछ अपने दिल की ख़ू ख़ूँ का भी शुक्रान चाहियेसौ बार उनकी ख़ू ख़ूँ का गिला कर चुके हैं हम