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घर / पंकज सुबीर

15 bytes added, 18:22, 19 मई 2009
|रचनाकार=पंकज सुबीर
}}
<poem>
मेरा घर बुढ़ाने लगा है
खांसती हैं दीवारे आजकल
कि मेरा घर
बूढ़ा होता जा रहा है
</poem>
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