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(यह पंडित नरेन्द्र शर्मा की एक कविता है जो १९३२ में हिन्दी की प्रख्यात पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। यह १९६० में प्रकाशित सरस्वती के हीरक जयन्ती विशेषांक में भी सम्मिलित है; जहाँ से मुझे मिली है। बहुत सुन्दर लगी मुझे इस लिये आपके साथ बाँट रहा हूँ, उनकी सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह की अनुमति से।...लक्ष्मीनारायण गुप्त)
हर लिया क्यों शैशव नादान?