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Kavita Kosh से
ये कह के छेड़ती है हमें दिलगिरफ़्तगी <br>
घबरा गये हैं आप तो बहर बाहर ही ले चलें <br><br>
इस शहर-ए-बेचराग़ में जायेगी तू कहाँ <br>
आ ऐ शब-ए-फ़िराक़ तुझे घर ही ले चलें <br><br>