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|रचनाकार=रवीन्द्र दास
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<poem>
कोलाहल सुनकर उड़ गई सारी चिड़िया
 
फ़िर मैं अकेला रह गया
 
निराश और हताश!
 
मैं अकेलेपन में होना चाहता हूँ आस्तिक
 
वाज़िबन मैं कुछ भी होना चाहता हूँ ......
 
आई है कोई अकेली चिड़िया
 
मुझे अकेले उदास बैठा देख
 चहचाहा चहचहा रही है 
शायद कुछ गा रही है
 
शायद कुछ शुभ संदेश सुना रही है
 
चाहकर भी नहीं समझ पा रहा
 
मैं उसका आशय
 
मानुष भाषा का पुतला हूँ मैं ओ चिडिया
 
बोल न तू मानुष भाषा में
 
ओ चिडिया !
 तू यूं यूँ भी गा चहचहा 
लेकिन तू यहाँ से बिल्कुल मत जा
 
जैसे मैं नहीं समझ पाया उसकी
 
चिडिया ने भी नहीं पहचानी मेरी पीडा
 
चली गई मुझे अकेला करके
 समय के बियावान में ........</Poem>
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