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Kavita Kosh से
फिर अम्रत रस की बूँद पड़ी तुम याद आये<br><br>
पहले तो मैं चीख़ के रोया और फिर हँसने लगा<br>बादल गर्जा गरजा बिजली चमकी तुम याद आये<br><br>
दिन भर तो मैं दुनिया के धन्धों धंधों में खोया रहा<br>
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आये<br><br>