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|संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह 'दिनकर'
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[[रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 1|<< तृतीय सर्ग / भाग 1]] | [[रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 3 | तृतीय सर्ग / भाग 3 >>]] वसुधा का नेता कौन हुआ? :भूखण्ड-विजेता कौन हुआ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? :नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया,
जब विघ्न सामने आते हैं,
मन को मरोड़ते हैं पल-पल, :तन को झँझोरते हैं पल-पल।
सत्पथ की ओर लगाकर ही,
वाटिका और वन एक नहीं,
वर्षा, अंधड़, आतप अखंड, :पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।
वन में प्रसून तो खिलते हैं,
कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर,
विपदाएँ दूध पिलाती हैं, :लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।
जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,
बढ़कर विपत्तियों पर छा जा,
जीवन का रस छन जाने दे, :तन को पत्थर बन जाने दे।
तू स्वयं तेज भयकारी है,
वर्षों तक वन में घूम-घूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, :पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।
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