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{{KKRachna
|रचनाकार=रहीम
|अनुवादक=
|संग्रह=रहीम दोहावली
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अनुचित बचन वचन न मानिए, जदपि गुराइसु गाढ़ि । <BR/>गाढ़ि।है रहीम रहीम रघुनाथ तेतें, सुजस भरत को बाढ़ि ॥ 7 ॥ <BR/><BR/>बाढ़ि॥7॥
अब रहीम मुसकिल परीमुश्किल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम । <BR/>काम।सांचे साँचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम ॥ 9 ॥ <BR/><BR/>राम॥9॥
कमला थिर न रहीम कहि रहीम या जगत तें, प्रीति गई दै टेर । <BR/>यह जानत सब कोय।रहि रहीम नर नीच मेंपुरुष पुरातन की बधू, स्वारथ स्वारथ टेर ॥ 28 ॥ <BR/><BR/>क्यों न चंचला होय॥26॥
कागद को रहीम पर द्वार पैसो पूतरा, जात न जिय सकुचात । <BR/>सहजहि मैं घुलि जाय।संपति के सब जात हैंरहिमन यह अचरज लखो, बिपति सबै लै जात ॥ 40 ॥ <BR/><BR/>सोऊ खैंचत बाय॥37॥