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Kavita Kosh से
देखूँ तो मौत ढूँढ रही है बहाना क्या <br><br>
तिरछी निगह निगाह से ताइर-ए-दिल हो चुका शिकार <br>
जब तीर कज पड़ेगा उड़ेगा निशाना क्या?<br><br>
बेताब है कमाल हमारा दिल-ए-अज़ीम <br>
महमाँ साराय-ए-जिस्म का होगा रवना रवाना क्या<br><br>
यूँ मुद्दई हसद से न दे दाद तू न दे <br>
आतिश ग़ज़ल ये तूने कही आशिक़ाना क्या?