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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''औरत लोगबाबू जी<br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[येव्गेनी येव्तुशेंकोआलोक श्रीवास्तव]]
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मेरे जीवन में आईं हैं औरतें कितनी
गिना नहीं कभी मैंने
पर हैं वे एक ढेर जितनी
अपने लगावों का मैंनेकभी कोई हिसाब नहीं रक्खापर चिड़ी से लेकर हुक्म तक घर की बेगमों को परखाखेलती रहीं वे खुलकर मुझसे उत्तेजना के साथऔर भला क्या रखा थदुनिया के इस सबसे अविश्वसनीयबुनियादें दीवारें बामों-दर थे बाबू जीबादशाह के पाससबको बाँधे रखने वाला ख़ास हुनर थे बाबू जी
समरकन्द तीन मुहल्लों में बोला मुझ से एक उज़्बेक-उन जैसी कद काठी का कोई न था"औरत लोग होती हैं आदमी नेक"औरत लोगो के बारे में मैंने अब तक जो लिखी कविताएँएक संग्रह पूरा हो गया और वे सबको भाएँअच्छे ख़ासे ऊँचे पूरे क़द्दावर थे बाबू जी
मैंने अब तक जो लिखा तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है और लिखा है जैसाऔरत लोगों ने माँ और पत्नी बनलिख डाला अम्मा जी की सारी सजधज सब वैसाज़ेवर थे बाबू जी
पुरुष हो सकता है अच्छा पिता सिर्फ़ तबमाँ जैसा कुछ होता है उसके भीतर जबऔरत लोग कोमल मन की हैं दया है उनकी आदतमुझे बचा लेंगी वे उस सज़ा से, जो देगी मुझेख़ालिस जज़बाती और ऊपर से ठेठ पितापुरुषों की दुष्ट अदालतअलग अनूठा अनबूझा सा इक तेवर थे बाबू जी
मेरी गुरनियाँ, मेरी टीचर, औरत लोग हैं मेरी ईश्वरपृथ्वी लगा रही है देखो, उनकी जूतियों के चक्करमैं जो कवि बना हूँ आज, कवियों का यह पूरा समाजसब उन्हीं कभी बड़ा सा हाथ खर्च थे कभी हथेली की कृपा हैसूजनऔरत लोगों ने जो कहा, कुछ भी नहीं वृथा है सुन्दर, कोमलांगी लेखिकाएँ जब गुजरें पास से मेरेमेरे प्राण खींच लेते हैं उनकी स्कर्टों के घेरे  मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजयमन का आधा साहस आधा डर थे बाबू जी
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