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शारदे / महेश अनघ

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कवि: [[कुमार रवींद्र]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:गीत]]
[[Category:कुमार रवींद्र]]
 
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मूर्तिवाला शारदे को
कलमुंही तू दो टके कीक्यों गई थी कार में
क्यों गई थी कार क्या वहां साधक मिलेंगे सेठ में सरकार में
क्या वहां साधक मिलेंगे सेठ में सरकार में खंडिता हो लौट आई हाथ में बख्शीस लेकर
पर्व वाले दिन
तू फ़कीरों कबीरों के
तू फ़कीरों कबीरों के वंश की संतान है
साहबों की साज़ साज सज्जाके लिए सामान है
के लिए सामान है इसलिए कच्चे घरों में ओट देकर तुझे पाला
और टाले दिन
कामना थी पांव तेरे
 
महावर से मांड़ते
 
फिर किसी दिन पूज्य स्वर से
सात फेरे पाड़तेकामना थी पांव तेरे महावर से मांड़ते
क्या करें ऊंचे पदों नेफिर किसी दिन पूज्य स्वर से सात फेरे पाड़ते
क्या करें ऊंचे पदों ने पद दलित कर छंद सारे
मार डाले दिन