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ऐसी आज़ाद रूह इस तन में।

क्यों पराये मकान में आई॥


बात अधूरी मगर असर दूना।

अच्छी लुक़नत ज़बान में आई॥


आँख नीची हुई अरे यह क्या।

क्यों ग़रज़ दरमियान में आई॥



मैं पयम्बर नहीं यगाना’ सही।

इससे क्या कस्र शान में आई॥