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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= आसी ग़ाज़ीपुरी }} <poem>कोई तो पीके निकलेगा, उडे़गी कुछ तो बू मुँह से।
दरे-पीरेमुग़ाँ पर मैपरस्ती चलके बिस्तर हो॥
कहीं मेरी ही वो फूटी हुई तक़दीर न हो॥
</poem>