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{{KKRachna
|रचनाकार=शिरीष कुमार मौर्य
|संग्रह=पृथ्वी पर एक जगह / शिरीष कुमार मौर्य
}}
अशोक पांडे के लिए कविता ...<br>
भाषा में<brpoem>वे हमारे शरीर से आती हैं<br>और लौट जाती हैं अपना काम करके<br>वापस शरीर में<br>वे बेधक होती हैं कभी<br>और कातर भी<br><br>'''अशोक पांडे के लिए कविता...'''
उनमें चहरे दिखायी देते हैं<br>भाषा मेंकभी अपमान तो कभी क्रोध वे हमारे शरीर से भरे<br>आती हउनमें झलकते और लौट जाती हैं हमारे दिल<br>अपना काम करकेप्रेम और घृणा<br>वापस शरीर मेंवे बेधक होती हैं कभीसाहस और कायरता से बने<br><br>कातर भी
वे ताकात का अभद्र बखान हो सकती उनमें चहरे दिखायी देते हैं<br>कभी अपमान तो कभी क्रोध से भरेउनमें झलकते हैं हमारे दिलप्रेम और घृणासाहस और असमर्थता का हताश बयान भी<br><br>कायरता से बने
जो भी वे ताक़त का अभद्र बखान हो पूरी दुनिया में<br>सकती हैंहर कहीँ<br>वीभत्स और अश्लील करार दिए जाने के बावजूद<br>वे एक पुराना और ज़रूरी हिस्सा हैं<br>हमारी अभिव्यक्ति असमर्थता का<br><br>हताश बयान भी
जो भी हो पूरी दुनिया मेंहर कहीँवीभत्स और अश्लील करार दिए जाने के बावजूदवे एक पुराना और ज़रूरी हिस्सा हैंहमारी अभिव्यक्ति का< सोचिये तो ज़रा<br>कितना पराया लग सकता है एक दोस्त<br>
अगर नहीं देता गालियाँ !
</poem>
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