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ऊपर समतल
नीचे दलदल
मन में विष,कर
में गंगाजल
अपना अपना
कम्बल सम्बल
आज गवा कर
पछता तो कल
जीना तो है
मरना पलपल
कीचड़ कीचड
कमलदल
कोशिश करके
निकले भी हल
मौत ठिकाना
जीवन चल चल
प्रेम बढ़ाना
नफरत का हल
</poem>
ऊपर समतल
नीचे दलदल
मन में विष,कर
में गंगाजल
अपना अपना
कम्बल सम्बल
आज गवा कर
पछता तो कल
जीना तो है
मरना पलपल
कीचड़ कीचड
कमलदल
कोशिश करके
निकले भी हल
मौत ठिकाना
जीवन चल चल
प्रेम बढ़ाना
नफरत का हल
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