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नया पृष्ठ: <poem> दिनभर राम भगत बन जपते रहते मालाधारी सांझ ढले ही बन जाते हैं पूर...
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दिनभर राम भगत बन जपते रहते मालाधारी
सांझ ढले ही बन जाते हैं पूरे असल शिकारी
दिन के उजालों में तो अंधे होकर बैठे से रहते हैं
अंधियारे में मारोमारी कैसे मायाधारी उल्लू
पत्ता पत्ता बूटा बूटा अब उख़ड़ा समझो अब उजड़ा
बैठ गए हैं समझ ठिकाना गुलशन डारी डारी उल्लू
पहले लूट मचाकर खुद ही खूब तबाही कर डाली फिर
जांच कमीशन के बनकर खुद आए हैं प्रभारी उल्लू
जन्म मरण के बंधन से वह मुक्ति पथ पर हो सकत था
माया ने जब जाल बिछाया प्रेम बना संसारी उल्लू
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दिनभर राम भगत बन जपते रहते मालाधारी
सांझ ढले ही बन जाते हैं पूरे असल शिकारी
दिन के उजालों में तो अंधे होकर बैठे से रहते हैं
अंधियारे में मारोमारी कैसे मायाधारी उल्लू
पत्ता पत्ता बूटा बूटा अब उख़ड़ा समझो अब उजड़ा
बैठ गए हैं समझ ठिकाना गुलशन डारी डारी उल्लू
पहले लूट मचाकर खुद ही खूब तबाही कर डाली फिर
जांच कमीशन के बनकर खुद आए हैं प्रभारी उल्लू
जन्म मरण के बंधन से वह मुक्ति पथ पर हो सकत था
माया ने जब जाल बिछाया प्रेम बना संसारी उल्लू
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