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09:49, 5 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= बशीर बद्र
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अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया
कागज में दब के मर गए कीडे किताब के
दीवाना बे पढ़े लिखे मशहूर हो गया
महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन जमीं से चाँद बहुत दूर हो गया
तनहाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना
आइना बात करने पे मजबूर हो गया
सुब्हे विसाल पूछ रही है अजब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया
कुछ फल जरूर आयेंगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन तेरा मतालबा मंजूर हो गया
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