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निम्न पंक्तियाँ कल (८-अगस्त-२००९) रची थी:
समय खड़ा है द्वार हमारे,<br />जो कहते भारत को घर|<br />वही आज निज भाग्य सवाँरे,<br />ले जाएँ चरमोत्कर्ष पर||<br />हमें आज ये धरा पुकारे,<br />की आओ मेरी पुकार पर|<br />जाती धर्म के काट ये बंधन,<br />शीश नवाओ शांति पर||<br /><br /> --सुधांशु मिश्र<br />--[[सदस्य:सुधांशु|सुधांशु]] ०८:३४, ९ अगस्त २००९ (UTC)