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Kavita Kosh से
<poem>परिवर्तन के नियम ठगे हैं
देख, प्यार का रंग ना बदला !
आम का पकना, रस्ता तकना
माँ के आगे सब बच्चे हैं
हर सागर है उससे उथला !
माधव बिन ज्यों राधा के दिन
कृषक मेह बिन, दीप नेह बिन
कष्ट जगत के बहुत बड़े हैं
आज बुद्ध तज घर फिर निकला !
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