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तुलसीदास के दोहे / तुलसीदास

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लेखक: [[तुलसीदास]]
[[Category:दोहे]]
 
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:तुलसीदास]]
तुलसी भीतर बहारों जौ चाह्सी उजियार
 
 
नाम राम को अंक है , सब साधन है सून!
 
अंक गए कछु हाथ नही, अंक रहे दस गून!!
 
 
प्रभु तरु पर, कपि डार पर ते, आपु समान!
 
तुलसी कहूँ न राम से, साहिब सील निदान!!
 
 
हरे चरहिं, तापाहं बरे, फरें पसारही हाथ!
 
तुलसी स्वारथ मीत सब परमारथ रघुनाथ!!
 
 
तुलसी हरि अपमान तें होई अकाज समाज!
 
राज करत रज मिली गए सकल सकुल कुरुराज!!
 
 
राम दूरि माया बढ़ती , घटती जानि मन मांह !
 
भूरी होती रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छांह !!
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